Thursday, April 25, 2013

किसी के मुंह से निवाला छीन लो। आंखों से खुशियां मत छीनना

पिताजी का फोन अभी अभी आया था। अपन ने साफ साफ कहा कि हम सागर नहीं आ सकते। अपन में हिम्मत ही नहीं है। छोटू लाल को सागर से दिल्ली लाने की। आप शायद भूल गए होगें। पिछली एक मार्च को छोटू लाल हुए थे। वे अब एक साल से ज्यादा के हो गए हैं। और इन दिनों वे हमारी और अपनी दादी के पास सागर में हैं। अपना परिवार कुछ ज्यादा ही भावनात्मक हैं। और वहीं से ऐसे संस्कार मिले। लेकिन फिर भी भगवान न जानें कहां से कुछ ऐसी ताकत हर बार देता था कि काम चल जाता था। लेकिन इस बार कोई सहारा नहीं दिखता। सो अपनी हिम्मत जबाव दे गई। सागर से आने में अब भी परेशानी होती है। १६ साल के बाद भी। लेकिन परेशानी इतनी ज्यादा हो जाएगी। शायद कभी सोचा भी नहीं था। दादी ने अपन से भी खूब मोह किया है। लेकिन छोटू लाल के लिए तो शायद वे पगला ही गई है।
छोटू लाल पिछले साल कुछ दिनों के लिए सागर गए थे। छह महीनें से भी ज्यादा दिन बाद लौटें। दोस्तों ने मजाक करना शुरू कर दिया था कि आलोक के बेटे का दादी ने अपहरण कर लिया है। इस बार भी वे अपना पहला जन्मदिन सागर में मनाने गए थे। सो अभी तक वहीं है। हर रात दादी की आवाज में खनक कम हो रही है। पहले कहा कि होली तो होने दो। फिर कुल देवी की पूजा का सहारा था। अब वे कोई नया मुनासिब बहाना नहीं खोज पा रही है। कभी कहती हैं। दिल्ली में गर्मी हैं। तो कभी कहती है। दिल्ली बच्चों के लिए ठीक नहीं है। तो कभी कहती हैं। बच्चा दिल्ली में अकेला कैसा रहेगा। दिल्ली का माहौल ही खराब है। आज इतने सालों में उन्होंने पहली बार कहा कि दिल्ली छोडकर कहीं नजदीक क्यों नहीं आ जाते। उनके तमाम तर्क एक ही बात कहते है कि उनका पंती कुछ दिन और उनके पास रहे।
छोटू लाल की हर बात पर वे इतना खुश होती है। उसका हर शब्द उन्हें साहित्य लगता है। हर नई बात नया जीवन लगता है। रोज रात को वे करीब आधा घंटा उसके दिन भर की दिनचर्या मजे से सुनाती है। हर वो नई चीज जो पिछले २४ घंटों में हुई है। उसे वे पूरा मजा लेकर सुनाती है। सयुक्त परिवार के विशेषताओं में ऱिश्तों के नाम भी अलग होतें है। पूरा परिवार दादी से जिज्जी कहता है। सो छोटू लाल भी जिज्जी कहना सीख गए हैं। और बात बात में जिज्जी कहते हैं। हर कोई घर के बाहर जब भी जाता है दादी से कहकर जाता है। सो वे भी जब भी घूमने जाते है। गोदी में चड़ते ही दादी से कहते है। आरय । अष्टमी के दिन वे घुटने के बल गए और दादी के पैर छू लिए। और दादी बहुत देर तक रोती रही। शायद उन्हें लगा होगा कि कुल के संस्कार सही जगह और सहा मात्रा में जाने लगे हैं।
अब अपन को यहां से जिंदगी समझ में नहीं आती। क्या करे। कैसे करें। दादी ही कहती थी कि कहावत है कि किसी के मुंह से निवाला भले छीन लो लेकिन किसी की आँखों से खुशियां मत छीनना। आंखों में पनपती खुशियां व्यक्ति के भविष्य का आधार बनती हैं। अपन तो दिल्ली में सुबह से शाम तक खबर के चक्कर में भागते फिरते हैं। सो अपन छोटू लाल से रात को ही मिलते हैं। सागर में उन्हें पिताजी के अलावा दर्जनों लोग घुमाने वाले हैं। इतने ही लोग उनसे गप्प करने वाले हैं। लगता है कि कहां बेचारे को सागर से उठाकर दिल्ली के ड्राइंग रूम में ले आउं। जैसे किसी मछली को एक्वेरियम में लोग रख लेते हैं। अपना दिमाग काम नहीं करता। आप ही बताओ क्या करू और कैसे करू। लिखना जरूर।

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