Tuesday, November 16, 2010

गरीबी ही अपने आप में हादसा है।

आप क्या कर लोगे ? दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का।उनके सांसद बेटे संदीप दीक्षित का। दिल्ली के महापौर का। पुलिस आयुक्त या फिर दिल्ली के उपराज्यपाल का। एमसीडी के कमिश्नर का। मैं यही सोचता रहा। उस मलवे के पास खड़े होकर। जहां पर कुछ सरकारी किस्म के लोग मलवा हटा रहे थे। पुलिस के कुछ आला अफसर दूर से ही गतिविधियों को देख रहे थे। इस खबर पर अपन नहीं थे। लेकिन फिर भी मन नहीं माना देखने चले ही गए। कुछ दोस्तों ने कहा भी कहां अंदर चले जा रहे हो। वहां बदबू बहुत है। लेकिन मन नहीं माना और कूदतें फांदते पहुंच ही गए। उस जगह पर जहां बच्चों की किलकारियां चीख में बदल गई। लोगों की जिंदगियां मौत का तमाशा बन गई। और देखते ही देखते वह जगह जहां लोग जिंदगी की उम्मीद लेकर रहते है। जिसे हम घर कहते हैं। कैसे वह जगह शमशानघाट से भी ज्यादा खतरनाक लगने लगती है। मैंने देखा। कुछ आंसू मेरी आँखों से छलके। कोई इसे नाटक न समझे सो अपन चुपचाप अँधेरे में किनारे हुए और बाहर आ गए।
बात सिर्फ इतनी सी नहीं है। कि कोई हादसा हो गया। और लोग मर गए। बात उस बेईमानी के धंधे की है। जो राजधानी में फल फूल रहा है। इसमें पुलिस से लेकर सरकारी नुमाइंदे तक शामिल है। यह बात क्या हमारी मुख्यमंत्री या एमसीडी के महापौर नहीं जानते। अगर नहीं जानते तो उन्हें शासन करने का क्या हक है। मुझे समझ में नहीं आता। लोकतंत्र की किताब मे लिखी इबारतें सोने की तरह चमकती है। लेकिन हकीकत की दुनिया में वे कहां चली जाती है। पता ही नहीं चलता। एक हादसा हुआ है। जहां से लगातार लाशें निकलती जा रही है। उस इलाके की जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों को नींद कैसे आ सकती मुझे यह भी समझ में नहीं आया।
मैं पूरी घटना को कभी पत्रकार बनकर तो कभी आम आदमी की तरह जगह बदल बदल कर देखता रहा। और सोचता रहा। क्या हम कुछ भी नहीं कर पाएगें। इन बेइमान लोगों का। क्या कल फिर यही लोग अपने दफ्तरों में जाकर फिर कुर्सियां तोड़ेगे। फाइलों पर दस्तखत करेगें। क्या इन लोगों कि जिंदगिया यू ही बेकार थी। जो चली गई। क्या इसकी कीमत कोई नहीं चुकाएगा। मैंने सुना है जब बहुत बातें करनी हो तो कुछ भी नहीं कहा जाता। आज यही हालत मेरे साथ है। मैं बहुत कुछ लिखना चाहता हूं। लेकिन आज लिख नहीं पा रहा। पर यह जरूर है। हमारे देश में गरीबी ही सबसे बड़ा हादसा है। जो हमारे साथ हर रोज घटता है। कभी नाम बदलकर। कभी चेहरा बदलकर। कभी हम दब कर मर जाते हैं। तो कभी हम बिना दवाई के।हमारी जिंदगी खत्म हो जाती है।कभी तेज रफ्तार की बस आकर कुचल देती है। तो कभी कोई रहीसजादे नशे में हमारे ऊपर से गाड़ी चलाकर ले जाते है। आप को क्या लगता है कि हमारी जिंदगी इतनी सस्ती क्यों है। क्यों कोई जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इन मौतों के लिए। या यह सिर्फ एक खबर बन कर रह जाएगी। लिखिएगा जरूर।

2 comments:

  1. Yes! probably so..yeh ek khabar banke hi rah jayegi...but I sincerely think that media has a great role to play.. "if the person is not afraid of his boss to give him a pink slip after he/she writes about an influential person". Best of luck..keep up the good job and try and stop this corruption...

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  2. Good Comment...Dear
    Lekin Media ise BREAKING NEWS hi banakar na bhul jaye...
    AApne Lakh Takee ki baat kah di ...GARIBON KE LIYE HI HAADSE HOTE HAIN...KYOKO BADE LOGO KO HADSON KOI FARK NAHI PADTA...

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