Friday, November 12, 2010

क्या आप कभी मिलते हैं। अपने दादा के दोस्तों से।

कैलाश जोशीजी के पास प्रतिक्रिया लेने गए थे। सुदर्शन सोनिया विवाद पर। बात संघ की निकली और उनके लोगों की। उन्होंने बताया कि गोपाल जी व्यास इन दिनों दिल्ली में हैं। वे छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के सदस्य है। करीब 25 साल पहले उन्हें देखा था। फिर वे इधर उधर घूमते रहे। और अपन दिल्ली आ गए। लेकिन दादा के पास उनके पत्र आते रहे। वे अपने हालचाल भी पूछते थे। सो उनका मकान नंबर पूछकर आज मिलने पहुंच गए। पत्रकार की वेशभूषा में देखकर वे समझ गए। कि प्रतिक्रिया चाहिए। मैंने बताया कि में पत्रकार बन कर नहीं आया हूं। सिर्फ आपसे मिलना चाहता हूं। खूब बातें करी। उन्होंने पुरानी बातेँ। सुनाई। 25 साल बाद भी पूछा। कि अभी भी नई नई किताबें पढ़ने की रुची है या छूट गई। मैं चुप रहा।
मैं दिन भर सोचता रहा। अपने दादा के एक पुराने दोस्त से मिलने गया था। या उस रूप से अपने दादा को देखना चाहता था। उस बुजुर्ग आदमी में शायद मैं अपने बब्बा को खोजता रहा। हम अक्सर बुजुर्ग लोगों में अपने दादा को तलाशते रहते हैं। और जो हिस्सा उनसे मिलता है। हम उसे पूजने लगते हैं। लगता है जैसे इस दुनिया के हर बुजुर्ग में एक हिस्सा मेरे दादा का है। उस हिस्से की तलाश में हर बुजुर्ग को खंगालता रहता हूं। मेरे मकान मालिक हर सुबह चार बजे उठकर बैठ जाते हैं। उनकी यही आदत मुझे मेरे दादा से मिलाती है। और उनके प्रति एक अपनापन लगता है। पिछले दिनों बस में एक बुजुर्ग महिला से मुलाकात हुई। अपन शान से बैठे थे। सफर लंबा था। लेकिन वे बाजू में खड़ी थी। हम खड़े हो गए। और उन्हें बैठा दिया। दो घंटे के सफर में थका नहीं। सिर्फ उन्हें देखता रहा। उस हिस्से को तलाशता रहा। जो उन्हें मेरी दादी के साथ मिलाता हो। पीछे खड़े एक आदमी ने कहा भी आप भले आदमी मालूम होते है। बुजुर्ग की इज्जत करते हैं। मैंने सोचा इसको कैसे बताऊ। यह सीट मैंने अपनी दादी को दी है। इस बुजुर्ग महिला को नहीं।
जब कभी हमारी जिंदगी का एक हिस्सा कट कर हमसे छूट जाता है। उस अधूरे पन को दूर करने के लिए हम कितनी कोशिशें करते हैं। कभी स्वाभाविक तो कभी आर्टीफिशियल ।लेकिन हम कितनी ही खींचतान करें। जो छूट जाता है। वह पूरा नहीं होता। लेकिन मैंने पढ़ा है कि एक लेखक ने लिखा है कि जिन्हें रेगिस्तान में मृगमारीचका नहीं होती। उनकी प्यास में जरूर कुछ कमी रहती है। मेरे दोस्त अक्सर शिकायत करते हैं कि ब्लाग में दादी और दादा से ऊपर उठो। लेकिन न जानें क्यों मैं वापस उन्हीं के पास आ जाता हूं। शायद यह मेरा वो टूटा हुआ हिस्सा है जिसे में अक्सर पूरा करने की कोशिश में लगा रहता हूं। क्या आप भी कभी भागकर जाते हैं। अपने दादा के दोस्तों से मिलने मेरी तरह। कैसे करते हैं जिंदगी के इस टूटे हुए हिस्से को पूरा। हमें लिखिएगा जरूर।

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति .

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  2. wah sir.. kabhi fir milen to mera bhi pranam kahiyega..

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