मेरे एक बहुत ही प्रिय दोस्त का रात दो बजे फोन आया। वे निराश थे। टूटे हुए। और बेहद दुखी। हमने उन्हें इस रुप में कभी न देखा था। न इस भाषा में उन्हें सुना था। वे लगभग रोने को थे। और बात खत्म करते करते रो ही दिए। वे एक प्रमुख अंग्रेजी चैनल में रिपोर्टर थे। लेकिन अचानक अपने संपादक से अनबन कर बैठे। कल उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। पत्रकारिता अजीब क्षेत्र है। तुम मेहनत करते हो। तिनका तिनका जिंदगी भर जमा करते हो। लेकिन एक झटके में सब कुछ लुट जाता है। तुम्हें पता ही नहीं चलता। और तुम जमीन पर होते है। वो ऊंचाई जिस पर तुम हमेशा अपने को खड़े पाते है। जहां से तुम्हें दुनिया बराबरी की लगती है। और कई लोग बहुत छोटे लगते है। वह ऊंचाई असल में तुम्हारी नहीं होती। तुम्हारे नीचे से जैसे ही उसें खींच लिया जाता हैं। तुम इस जमीनी हकीकत को पचा ही नहीं पाते। और तुम टूटते हो इंच इंच।
बात एक नौकरी जाने की या फिर मिलने की नहीं है। बात है उस झूठे भ्रम की।जो हम पाल कर रखते हैं। और उस रेत की ऊंचाई की ।जिस पर हमें खड़े होकर लगता है। कि यह स्थाई है। हम जिंदगी भर को यहीं डेरा डालकर बैठ गए है। लेकिन असल में वह प्रपंच होता है। झूठ होता है। आदमी का कद उसका होता है। ऊंचाई उसकी नहीं होती है। यह बात हमें समझ में ही नहीं आती। लेकिन इस पहेली को सुलझाना कठिन है। हम कैसे कोशिश करें। कि हमारा कद बढ़े। ऊंचाई नहीं। हम अक्सर जो आसान होता है। उसें पाने में लग जाते हैं। प्रेमचंद हों या फिर निराला। ये लोग किसी नौकरी के या फिर किसी नकली ऊंचाई के मोहताज नहीं थे। इन्होंने अपने कर्म से अपना कद ऊंचा कर लिया था। आज सचिन तेंदुलकर को आप भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनाए या नहीं। इससे उस प्रतिभाशाली खिलाड़ी को फर्क नहीं पढ़ेगा। न हिं किसी एक फिल्म के हिट होने या फिर फ्लाप होने से अमिताभ बच्चन का कद कम या ज्यादा नहीं होता।
हम अगर जीवन में कुछ स्थाई करना चाहते है। तो हमें ऊंचाई पर कम और अपने कद पर ज्यादा ध्यान देना होगा। हालांकि कहा भी जाता है कि यह सदी उसकी है जिसके पास ज्ञान है। हमें अपना हुनर और ज्ञान बढ़ाना होगा। हमें छुद्र सफलताओं के पीछे भागने के बजाए। कुछ सार्थक करने की बात सोचनी होगी। ऐसा जीवन में क्यों होता है। कि एक चोट में हम पूरे के पूरे टूट जाते हैं। शायद हमारा होम वर्क अधूरा रहता है। या फिर हमने अपने आप को कर्म की और अभ्यास की आग में तपाया ही नहीं ।मैं अपने दोस्त का फोन सुनकर रात भर सो नहीं पाया। काफी दुखी थी। लेकिन यह दुख यह परेशानी उसके लिए नहीं थी। यह अपनी लगती है। फर्क सिर्फ इतना है कि हम उस रेत के टीले पर अभी भी खड़े है। और वह जमीनी हकीकत पर आ गया है। क्या करें अपने कद के साथ समझ में नहीं आता। आप ही कुछ बताइए। जल्दी करिएगा।
आप सही कह रहे हैं, अपना कद कैसे बढ़े बस हमेशा यही प्रयत्न करना चाहिए। किसी दूसरे के सहारे पाई हुई ऊँचाई कभी भी हमें धरातल पर ला पटकती है। मैं तो कम से कम यही प्रयास कर रही हूँ। जितना भी है बस अपना ही है।
ReplyDeleteसच है, अक्सर आदमी ऊंचाई को ही अपना कद समझ बैठता है. ऊंचाई पाने के शार्टकट हो सकते हैं कद बढ़ाने के नहीं. ऊंचाई माया है और कद यथार्थ...
ReplyDeleteअनिल सोनी
Dear Alok,
ReplyDeleteAaj hum logon ki mulakat hui aur aapke kuchh blog jo mere paas saved hain unhe dekh raha tha...
Ye blog phir se dil ko chhu gaya...
Start writing...again