Wednesday, June 29, 2011

लगड़े कक्कू और 25 पैसे के सिक्के एक साथ गए।

आपको यह पूरी तरह फिल्मी लगेगा। मुझे भी लग रहा है। हो सकता है आपको लगे बनाया हुआ झूठ है। अच्छा ब्लाग लिखने के लिए। मुझे भी शंका हो रही है। लेकिन यकीन मानिए। मैं झूठ न लिखूंगा। न कहूंगा। क्योंकि ब्लाग मेरी रोजी रोटी नहीं है। मेरी ईबादत है। शब्दों की पूजा है। और हर रोज लिखूं। इसीलिए यह जरूरी भी नहीं है। क्योंकि ये दोंनों बातें जिस तरह एक साथ घटी यकीन ही नहीं होता। लगता है क्या ये मुमकिन है। या फिर एक युग का अंत इसी तरह होता है।
सागर से विनीत का फोन था। हालचाल पूछने के लिए। लंबी बात मौसम से लेकर। राजनीति तक। क्लास की लड़कियों से लेकर। टीचर्स तक। फिर उसने अचानक कहा। आलोक तुम्हें लगड़ा कक्कू याद है। आज वे चले गए। हम अपने दोस्त के पिता के लिए शमशान गए थे। वहां उनका परिवार भी था। आज सुबह वे चले गए। इच्छा तो हुई कह दे। कक्कू एक समोसा दे दो। लाल चटनी डालकर। शायद तुम होते तो इस तरह की नौटंकी कर ही देते। पत्रकार जो हो। तुम्हारा भरोसा नहीं। कहो तुम बाजार से कुछ समोसे लाकर उनके साथ विदा कर देते है। हम लोग यही बात कर रहे थे। अगर आलोक सागर में होता तो कुछ नौटंकी आज शमशान में जरूर होती। अच्छा हुआ। तुम नहीं थे।
हमें याद है। जब हम सागर में सैंट जौसेफ कान्वेंट में पढ़ते थे। उस समय लगड़े कक्कू समोसा बैचते थे। चार आने का समोसा। उनके पास प्लास्टिक की एक डलिया थी। समोसे उसी में रहते थे। साथ में प्लास्टिक की बोतल। उसमें होती थी लाल चटनी। कक्कू की डलिया में से हम बड़ा समोसा खोजते। और उसी को कई बार पूरा तो कई बार आधा आधा बांट कर खाते थे। हां समोसे के बीच में वे ही एक खाई बना देते थे। और उसमें लाल चटनी भी भर देते थे। पानी पीने का मत मांगना। साफ साफ कह देते थे। और साथ में लिए है वो। कक्कू कहते थे वो किसी इमरजेंसी के लिए है। यानि किसी को मिर्च लग जाए।या फिर खांसी आ जाए। तो बच्चा क्या करेगा। तुम लोगों को नहीं देगें। कई बार हम दो दोस्त मिलकर दस दस पैसे चंदा कर लेते। और फिर कक्कू को धर्म संकट में डालते। लेकिन वे बात समझ जाते। दोनों दोस्त चंदा करके आए है। और 25 पैसे का समोसा 20 पैसे में ही दे देते। और हां ज्यादतर वे आखरी समोसे के पैसे नहीं लेते थे। वो किस्मत थी।
आज दफ्तर से फोन आया कि 25 पैसे का सिक्का का अब कल से बंद हो जाएगा। सो स्टोरी करना है। मैं स्टोरी को प्लान कर ही रहा था तभी सागर बात हुई। और मैं अचानक सन्न रह गया। हमारी जिंदगी से 25 पैसे का सिक्का जाना और लगड़े कक्कू का मरना एक साथ हुआ। लगा जैसे एक युग का अंत हो गया। अब न हमारी जिंदगी मे 25 पैसे का सिक्का है।और न 25 पैसे में समोसा देने वाले लगड़े कक्कू। मेरे दोस्त यकीनन मजाक बनाते। लेकिन में अगर सागर में होता तो उनके पैर छूने के साथ साथ एक 25 पैसे का सिक्का जरूर विदा कर देता। हर चीज से हम कुछ न कुछ खोते है। आपने भी कुछ न कुछ 25 पैसे के सिक्के के साथ खोया होगा। कंजूसी मत करिएगा। हमें भी बताइए।

6 comments:

  1. Shandaar Alok. maja aa gaya. bahut achha likha.chavanni ab yadon me rah jayegi..jaise meri yadon me dassi aur panji ke alawa ek aur do paisa hain.in paison se ki gai bachpan ki khariddari ki bhi yaden hain.badhai.

    SURYAKANT PATHAK

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  2. बिल्कुल सच्ची बात है,
    २५ पैसे की लाल आइस क्रीम
    २५ पैसे की छोले
    हाँ आलोक भाई साहब, एक बार मैं जो अक्सर गर्मियों की छुट्टियो मैं अपने ननिहाल जया करता था,
    एक बार मेरे नाना जी दुहनी ( पशु का दूध दोहन करना) कर के आए, एक लोटा दूध था, लगभग २ लीटर
    उन्होने मुझे कहा राजन अगर तुम यह दूध पी लोगे तो मैं तुम्हें १ रुपया दूँगा, आलोक भाई साहब उनके हाथ मैं
    चार चवन्नीयाँ थीं हमारी उम्र तब लगभग १२ या १३ होगी मैं जल्दी से दूध पी गया , इसके बाद लगभग ५ घंटे तक
    सोता रहा, लेकिन मेने चार चवँनी जीत ली,

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  3. चवन्नी का बंद हो जाना ,चवन्नी छापों को राहत भी देगा अब आदमी चवन्नी छाप नहीं कहलायेगा उसकी हैसियत में इजाफा अपने आप हो गया

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  4. Dear Alok,
    25 Paise (Chavanni) meri yaadon me hamesha bani rahegi kyonki jab me Panchvi class me aaya tha tab Mata ji ne Shani Bazar (Weekly haat of hindoria gaon) ke liye 25 paise fix kar diye the aur Bazar ke din subah se hi Chavanni ki Aash lagaye rahte the....Parantu lunch ke baad hi Chavanni milti thi..aur shaan se bazar jakar apne dil ki cheej lekar khate the....
    Halaki paise aur khadya samagri aur bhi beech-beech me milti rehti thi parantu uss CHAVANNI ka Intezar kuchh aur hi baat thi...
    Uske baad paise badte gaye parantu CHAVANNI aaj bhi yaad hai...

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  5. बहुत खूब !!! जिंदगी के धागे कहाँ कहाँ और कैसे कैसे उलझे हुए है ? कभी हम जान ही नही पाते ... और तब पता लगता है जब किसी का जाना गहरायी तक छु जाता है....तब हम अहसास करते है की हम जड़ो से भी जुड़े हुए थे, .......२५ पैसे के साथ भी न जाने कितनी टोफियाँ , कितनी रंग बिरंगी आइसक्रीम्स और बचपन की कितनी ही यादें जुडी हुई हैं .... मुझे याद है अपने दादा जी से २५ पैसे लेने की लिए मैं कितनी देर तक जिद्द करती रहती थी और मेरी कितनी ही सहेलियां उन २५ पैसे से आने वाली चीज में हिस्सेदार होने के लिए मेरे पीछे पीछे मेरे दादा जी का चक्कर लगाती रहती थीं .... वो भी क्या दिन थे , अब न दादा जी हैं और २५ पैसे भी विदा ले रहे हैं...

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  6. pachchis paisa hamari peedhi ki jindgi ka hissa thaa , jo hamare saath sada rahega .

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