Sunday, August 8, 2010

न पैर में खुजली होती है। और अब न ही कोई याद करता है।

शायद आपको याद होगा। जब कभी बचपन में हमारे पैर के तलवे में खुजली होती थी। तो दादी कहती थी। कोई याद कर रहा होगा। आज अचानक कई सालों बाद मेरे पैर में अचानक खुजली हुई। और मैं सोचने लगा कि शायद कोई याद कर रहा होगा। लेकिन इतने सालों बाद। बात कुछ अजीब सी है। लेकिन इन विश्वासों का जमघट जिंदगी में लंबे समय तक रहा है। हमारे बुंदेलखंड में अगर आपको हिचकी आने लगे। तो बाजू में बैठा कोई भी आदमी कह देगा। आपको कोई याद कर रहा है। लेकिन अब हमारी जिंदगी में न हिचकी आती है। और न ही पैर के तलवे में खुजली होती है।
बात इतनी सी नहीं है कि इन बातों का न कोई वैज्ञानिक आधार है। न सांस्कृतिक और न हीं दार्शनिक। ये हम भी जानते हैं। लेकिन फिर भी मन को हर खुजली के बाद हर हिचकी के बाद अच्छा लगता था। इस दुनिया में कहीं कोई है जो हमें याद करता है। लेकिन अब इस भागती और अकेली होती दुनिया में हमें कोई याद ही नहीं करता। हम सब अपनी दुनिया में अकेले होते चलते हैं। दिल्ली में ऐसा कभी होता ही नहीं। कि आपके दरवाजे की घंटी बजे और कोई आपका चाहने वाला दरवाजे पर खड़ा हो। कहता हो तुम्हारी याद आ रही थी। मिलने चला आया। यहां पर सिर्फ धोबी। कचरा उठाने वाले। पेपर या केबिल का बिल लेना वाला ही घंटा बजाता है। या कभी कभार गुस्से में पड़ोसी आता है।गाड़ी ठीक से खड़ा किया करो। मुझे अपनी गाड़ी निकालनी है। बुदबुदाकर चला जाता है।
लेकिन अपन जिन छोटे शहरो से आए है। वहां अक्सर ऐसा होता है। कि कोई भी आपको दरवाजे पर मिल जाएगा। उसे आपसे मिलने की इच्छा हुई । और वह चला आया। गप की। और चला गया। हमारे छोटे शहरों में लोगों के पास एक दूसरे के लिए समय है। उनके लिए स्थान भी है। लेकिन दिल्ली में तो अपने लिए ही आपको वक्त कम पड़ता है। परिवार मे हर रोज चिकचिक होती है। ऐसे में आप किसको याद करेगें। मुश्किल है न। चलिए फिर भी आज अच्छा लगा कि शायद दादी की बात सही हो। और किसी ने मुझे याद किया हो। कभी कभार आप भी मुझे याद कर लिया करिए। बहुत दिन हुए हिचकी नहीं आई।

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