Thursday, December 10, 2015

ताकत का भ्रम और भ्रम की ताकत

अपना वास्ता ताकतवर लोगों के साथ अक्सर पड़ता रहता है। अपनी नौकरी कुछ इस तरह की है। कभी उनके साथ तो कभी उनके खिलाफ खड़े होना पड़ता है। 25 साल की इस नौकरी में कई बार इन लोगों के साथ जिंदगी के अलग-अलग तरह के अनुभव भी हुए। यह सुनने में शायद एक जैसा ही अर्थ  देता हो। लेकिन यह दो प्रकार के लोग है। और आप जितने भीतर जाएंगे। इसका अंतर उतना ज्यादा आपको दिखाई देगा। ताकत का भ्रम होना अलग है। और भ्रम की ताकत में जीना यह भी अलग है। जिंदगी में अक्सर यह होता रहता है।लेकिन राजनीति में यह ज्यादा तेजी से होता है। जिन लोगों को अपन ने दिल्ली में किसी नेता को झोला उठाकर जनसत्ता के दफ्तर में आते देखा। वे आज ऐसे नेता हो गए। जिनके तेवर फिल्मी कलाकार राजकुमार की याद दिलाते हैं। और ऐसे लोग भी देखे जो उस समय तेवर में थे। बाद में किसी का झोला उठाकर आते देखा। यह है भ्रम की ताकत है। यह ताकत जो हमें समाज देता है। वह स्थायी नहीं होती। हमें लगता है कि इसे हमने अर्जित किया है। लिहाजा ये अब हमारे साथ ही रहेगी। लेकिन ऐसा नहीं  होता।
जिंदगी मेें ऐसे लोगों से भी अपना वास्ता रहता है। जिन्हें लगता है कि उनके पास ताकत है। लेकिन ताकत वास्तव में कहीं और होती है। उन्हें सिर्फ ताकत का भ्रम रहता है। और जिंदगी में वे अपने फैसले इसी ताकत का आधार बनाकर लेेते हैं। जो अक्सर गलत हो जाते हैं। मुझे अब लगता है कि वास्तव में यह शब्द ही भ्रम पैदा करता है। बेहतर हो  कि हम कभी ये महशूश ही न कराए न किसी और को न अपने आप को। जो दिखावे के खेल से बाहर  है। ताकत वही है।

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