Wednesday, May 1, 2013

मन के हारे- हार है। मन के जीते -जीत।

लोग बताते हैं। तिब्बत में ल्हासा युनिवर्सिटी में छात्रों को कुछ अलग तरह की शिक्षा दी जाती थी। उसमें  विद्यार्थियों को एक विशेष प्रकार का योग भी सिखाया जाता था। इस योग का ल्हासा यूनिवर्सिटी में नियमित प्रयोग चलता था। और इस विशेष प्रकार के योग प्रशिक्षण में छात्रों का पास होना जरूरी था। वह था हीट-योग। इस अजीब तरह के योग में शरीर में मन के जरिए गर्मी पैदा की जाने की प्रक्रिया सिखाई जाती थी। इसके चलते कड़ाके की ठंड में जब बाहर बर्फ पड़ रही हों। ऐसे में भी वे अपने मन के जरिए शरीर में इतनी गर्मी पैदा कर लेते थे कि शरीर से पसीना चूने लगे। बात यहां तक नहीं हैं। परीक्षा के दौरान इन छात्रों को ठंडी रात में किसी नदी के किनारे बिना वस्त्रों के खड़ा कर दिया जाता था। और पास में पेंट कमीज और उनका कोट गीला करके रख दिया जाता था। जो छात्र जितने ज्यादा कपड़े अपने शरीर की गर्मी से सुखा लेता था उसे उतने ज्यादा नंबर मिल जाते थे। सुना है कि कई बार कई नास्तिक किस्म के डाक्टरों ने कई प्रयोग किए इन छात्रों के साथ। लेकिन उनका विज्ञान हर बार हार गया।  वे भी इस बात को विवश हुए मानने के लिए कि मन अगर ठान ले तो ठंड में पसीना चू संकता है।
एक घटना और है। महाभारत में अर्जुन कहता है माधव मेरा शरीर इतना कमजोर हो रहा है कि मुझे खड़े होने में भी परेशानी हो रही हैं यहां तक कि गांडीव भी मेरे हाथ से गिर रहा है। इतना बलशाली अर्जुन खड़ा भी नहीं रह पा रहा है। वजह साफ है कि उसका मन दुविधा में है। उसका पूरा मसल्स पावर छू हो जाता है। क्योंकि ताकत संकल्प से आती है। और मन की दुविधा संकल्प को खत्म करती है। सो बलशाली अर्जुन भी इस तरह से निर्बल होकर रथ के पीछे जाकर बैठ जाता है। मैं पूरे यकीन से जानता हूं कि ये दोनों घटनाएँ आपको पहले से ही पता होगीं। और इससे भी ज्यादा घटनाएँ इस तरह की आप जानते हैं. फिर भी इन्हें लिखने का मन हुआ। शायद मैं इन्हें अलग तरह से देख रहा था।
रोज मर्री की जिंदगी में हम ऐसा अक्सर सोचते हैं कि हमारा शरीर साथ नहीं दे रहा। लेकिन वास्तव में शरीर की जगह हमारा मन साथ नहीं होता। और मन के साथ न होने की वजह है हमारे द्वंद्व। हमारी दुविधा। हमारी बैचेनी। हमारी खंड खंड हुई मन की स्थिति। संघर्ष करने से पहले ही हमारा मन सिर्फ हालात देखकर हार जाता है। मैने सुना है कि जब व्यक्ति अंधेरे में होता है  तो डरने की बजाय जोर जोर से सीटियां बजाने लगता है। और कायर आदमी अक्सर लड़ाई में जोर जोर से चिल्लाता है। डरपोक व्यक्ति अपनी बहादुरी की झूठी कहानियां अक्सर बनाकर सुनाता है। आप सभी समझ गए होंगे कि अपन डिप्रेशन में हैं। और इससे बाहर निकलने के लिए इस तरह की किस्से कहानियों का सहारा ले रहे है। लेकिन यह सच है। मैं इसे अनुभव करता हूं। कि हार या जीत पहले मन में ही पैदा होती है। बाद में वह जमीन पर उतरती है। चलो जीत का प्रयोग करके देखते हैं.। आप लोग हमारे साथ है न।

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