Monday, May 6, 2013

आपकी दुआ चाहिए। बच तो गया। पर हड्डियां टूट गई।

कौशल मेरा एक्सीडेंट हो गया। लगता है मेरे पैर की हड्डियां टूट गई। मुझे डर लग रहा है। समझ में नहीं आ रहा क्या करूं। बहुत दर्द हो रहा है। कौशल यानि डॉ कौशलकांत मिश्रा। वे पहले एम्स में थे। और छात्र आंदोलन के समय से उनसे अपनी दोस्ती हुई। अब तो वे किसी भाई से कम नहीं है।। इन दिनों दिल्ली के नामी डाक्टर है। हड्डी के। बहुत सधी हुई आवाज सामने से आई। तुम अस्पताल पहुंचों। मैं आ रहा हूं। घबराना बंद करो। और किसी को बताने की जरूरत नहीं है। ठीक है। अच्छा एक बात और बताओ कि क्या हड्डियां तुम्हें द्खि रही है। क्या खून ज्यादा बह रहा है। मैंने कहा नहीं। यानि यह बात शायद तय हो गई कि अपनी हड्डिया शरीर में हैं। और फिर अस्पताल चला गया। मुझे अभी सिर्फ इतना ही याद है। एक्सीडेंट कैसे हुआ। किस तरह हुआ। किसकी गलती थी। मुझे कुछ याद नहीं।
अस्पताल पहुंचे। एक्सरे हुआ। पता चला कि एक पैर की दो हड्डियां टूट गई है। एक हड्डी एक जगह से। दूसरी दो जगह से। कौशल ने आकर कहा ऑपरेशन करना होगा। अब बाबू कुछ दिन तक बिना सहारे के नहीं चल पाओगे। अपनी घबराहट और बड़ गई। भागदौ़ड़ की आदत है। अब कैसे काम चलेगा। फिर ऑपरेशन हुआ। अब घर आगए हैं। कल फिर पट्टी होगी। इसके बाद आगे का इलाज तय होगा। फिलहाल दर्द के साथ साथ घबराहट हो रही है। कि इतना समय कैसे कटेगा। बिना घूमे फिरे। अपने हर काम के लिए किसी अपने को आवाज देनी पड़ेगी। ये मुसीबत कैसी खत्म होगी।
आज १४ साल पुरानी एक बात याद आई। उन दिनों अपन जनसत्ता में थे। अपना दफ्तर आईटीओ पर था। नई नई मोटर साइकिल खऱीदी थी। नया नया प्रेम भी था। सो नई मोटर साईकिल पर प्रेमिका को बैठा कर घूमने के मजा ही कुछ और था।अपन मोटर साइकिल तो खरीद लाए थे। लेकिन हैलमेट नहीं खरीदा था। सो आईटीओ के पास ही एक छोटा सा चक्कर लगाने निकल पड़े। और कुछ दूर आगे ही पुलिस वाले ने रोक लिया। इंडियन एक्सप्रेस की भपकी दी। कहा इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्टर है। वह चुप रहा। लेकिन अपने सिपाही से बोला कि साले का एक्सीडेंट हो जाएगा तो कहेगा यमराज से कि इंडियन एक्सप्रेस से हैं। अपन वापस गए। उन दिनों सौ रूपए का चालान होता था। उससे मांफी मांगी। सौ रूपए दिए। और गाड़ी खड़ी दी। ऑटो से जाकर हैलमेट खरीद कर लाए। और फिर गाड़ी चलाई। आज जब अपन मोटरसाईकिल चलाना छोड़ रहे है तो वो ट्रैफ्रिक  पुलिस वाला याद आ रहा है। यह बात बुरा समय नहीं जानता कि अपन अब सहारा समय में विशेष संवाददाता है। न प्रकृति इस बात से डरती है कि पत्रकार से पंगा मत लो। फिलहाल तो अपन ठीक है। लेकिन दुआ करिए कि जल्दी ठीक हो जाउँ। मुझे भांगते फिरने की आदत है।एक जगह अच्छा नहीं लगेगा। ।

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