Sunday, November 27, 2011

क्या आपका संडे भी छोटा होता है।

दफ्तर से फोन आया था। कल क्या स्टोरी करोगे। और हमें समझ में आया कि संडे खत्म हो गया। न दोस्तों के साथ अड्डेबाजी कर पाया। न फिल्म देखी। न पत्नी के साथ बाहर जाकर डिनर किया। न वे किताबें पढ़ पाया। जो बुक फेयर से लाया हूं। महीनों पहले। न उन लोगों के घर जा पाया। जिनके घर शादी के बाद से ही जाना तय है। और हर संडे आगे खिसकता जा रहा है। न सरोजिनी नगर बाजार गया। जहां अपनी हैसियत के लोग पत्नि के साथ जाकर अक्सर मौसम के हिसाब से कपड़े खरीदते हैं। पत्नियां मोलभाव करती है। अपना काम सिर्फ थैले उठाकर घूमना होता है। न ही मालवीय नगर जाकर वो चाट और गोलपप्पे पत्नी को खिला पाया। जिनकी उसे अक्सर याद आती है। फिर भी छुट्टी का दिन निकल गया।
सोमवार सुबह जब आलस्य के साथ नींद खुलती है। और अखबार लेकर अपनी बीट की खबरें खोजता हूं। कहीं कुछ हमसे छूट तो नहीं गया। कहीं कुछ आज बड़ी खबर तो नहीं बनने वाली है। तभी पहला ख्याल मन में आता है। संडे को छह दिन और बचे हैं। और फिर हर रोज संडे के लिए लिस्ट बनाता रहता हूं। और लिस्ट हफ्ते भर बनती रहती है। हालांकि हर बार मेरी पत्नी की लिस्ट मुझ से लंबी होती है। ये अलग बात है कि वह लिस्ट शादी के बाद कभी पूरी तरह से पूरी नहीं हो पाई। कभी कहता हूं। संडे का दिन छोटा होता है। कभी लगता है। दफ्तर अपना भी पांच दिन खुलना चाहिए। और छुट्टी दो दिन की होनी चाहिए। और अपने सरकारी दोस्तों की दो दिन की छुट्टी देखकर मन दूर से ललचाता भी है। फिर किसी दार्शनिक की तरह सोचता हूं। कि छुट्टी कभी किसी का मन नहीं भर पाती। जैसी कितना भी सूद मिले। महाजन को कम ही लगता है।
आप पूछ सकते है। कि जब तुम कुछ कर ही नहीं पाए। तो फिर संडे गुजरा कैसे। मुझे तो अपने ३९ सालों का पता नहीं चल पाया। कि कुछ किया ही नहीं। और इतने साल निकल गए। बात संडे की तो छोड़ ही दीजिए। देर से सोकर उठा। आराम से चाय पी। अखबार की वे खबरे भी पढ़ी जिनसे अपना सरोकार नहीं था। बालकनी पर खड़े होकर दूसरी चाय पी। वो मोहल्ला जिसमें रहते हैं। उसे सरसरी नजर से देखा। सब्जी खरीदी। किराने की दुकान पर गया। नहाया। खाना खाया। फिर सो गया। कुछ लोग घर आ गए। उनके साथ चाय पी। जिंदगी की परेशानियों के बारे में कुछ फलसफे कहे। वे फोन सुने आराम से। जिनसे हफ्ते भर कहा। कि मैं मीटिंग में हूं। आपको कॉल बैक करता हूं। और कर नहीं पाया। शाम को घर के नीचे गया। कुछ जरूरी सामान लाना था। लौटकर आया। तभी फोन आ गया। और कल की स्टोरी खोजने लगा। अपना संडे खत्म हुआ।
लेकिन अगली बार। खूब सारी किताबें पढ़ूंगा। दादी से देर तक फोन पर बात करूंगा। पत्नी को शाम को चाट खिलाने ले जाउंगा। रात को बाहर डिनर भी करूंगा। सरोजिनी नगर मार्केट जाकर अपने लिए स्वैटर खरीदूंगा। हो सका तो महेंद्र या गंगेश के घर खाना खाने जाऊंगा। या फिर अनिल या आशीष के घर हो आउँगा। वक्त मिला तो पत्नी के साथ बाड़ीगार्ड या फिर दबंग नहीं तो सिंघम कोई न कोई फिल्म देखूंगा। या फिर शिव भैया के साथ जाकर कोई ऐतिहासिक जगह घूम कर आउँगा। अगले संडे बहुत काम करना है। अपना रैक जमाना हैं। किताबों को सलीके से रखना है। गीजर ठीक करवाना है। और........ बस इतना बता दीजिए। कि अगला संडे इतना छोटा तो नहीं होगा। जितना आज वाला था। आप क्या करते हैं संडे को बताइएगा।

3 comments:

  1. Chhote-2 karyon ki list banane aur planning karne se kuchh nahi hoga....Mann ki aawaz suno aur nikal jao jahan chaho...

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