नीरज का फोन आया। आलोक जी बाबा चले गए। शाम को अंतिम संस्कार होगा। अपनी नौकरी ऐसी है कि बीच में भाग नहीं सकते। दूसरों की तरह। सो चुपचाप रह गए। फिर जब काम पूरा हो गया। सो भाग कर शमशान पहुंचे। जलती हुई लकड़ियों के बीच बाबा को अंतिम बार देखा। प्रणाम किया। और आखरी बार बार रामराम कहा। आंख बंद कर कुछ देर चुप चाप खड़ा रहा। जानता था कि अब की बार वे जवाब नहीं देगे.। अपने आंसुओँ को कोई नाटक या दिखावा न समझे। सो चुपचाप पौंछ कर किनारे हो गया। और घर आ गया।
जनसत्ता के दिनों से ही अपन खिड़की गांव में रहते हैं। मोहल्ला बदला ही नहीं। सिर्फ घर बदलता रहा। शादी के बाद दो कमरे के घर से दो बेडरूम वाले घर में आना पड़ा। नीरज अपने पुराने दोस्त थे। शतरंज और कैरम साथ खेलते थे। सो उनका मकान अपन ने ले लिया। नीरज के घऱ में आए तो उनके बाबा से अपनापा हो गया। उन्हीं दिनों अपने दादा चले गए थे। मैं नीरज के दादा में अपने दादा खोजने लगा। उनकी कई आदतें अपनी देखी हुई सी लगती। वे रोज सुबह तीन बजे उठ जाते। टहलते रहते। जब से हमनें सुबह उठकर घूमना शूरू किया। वे खुश होते। मैं जब भी राम राम करता। पूरी ताकत के साथ जवाब देते राम राम भाई साहब। सुबह उठना चाहिए। आप अच्छा काम करते हो। जब कभी नौकरी से देरी से आता ।तब तक उनकी आधी रात हो चुकती। वे अक्सर कहते ये कौन सा काम करते हो। आधी रात तक नौकरी करते हों। वे शाम सात बजे तक सो जाते थे। हां कभी कभार उनकी नींद खुलती और अपनी मोटरसाइकिल नहीं दिखती तो जरूर पूछते। मैं अभी तक आया क्यों नहीं।
शमशान के उन कुछ मिनिट में मानों कितने साल आंखों के सामने से निकल गए। कोई अपनी पत्नी को कह रहा था कि गीज़र ऑन कर दो। मैं घर पहुंचने वाला हूं। हां तैयार हो जाओ। मेरी नीली कमीज निकाल दो। आकर फिर चलते हैं। और उसकी दुनियादारी के फोन ने अपनी आँखे खोल दी। लोग कहते हैं कि पहले शमशान में लोगों को लगता था कि दुनिया कितनी बेमानी है। एक दिन सभी का ऐसा होना है। और बाहर निकलते ही कुछ देर बाद वह सामान्य होने लगता था। लेकिन मैं देख रहा हूं। कि हमारी व्यस्तताओं ने हमसे यह मौका भी छीन लिया। इस जगह पर आकर हम कुछ देर को अकेले हो जाते थे। यह स्थान हमें सोचने पर मजबूर करता था। अब तो शमशान घाट पर भी फोन सुनने ही पडते हैं। और कालर ट्यून पर बजते गाने कजरारे कजरारे वीभत्स लगते हैं। आदमी हर किसी घटना में अपने स्वार्थ को देखता है। मुझे भी लगता है। कि कल सुबह कैसे ऊठूंगा। किससे राम राम कहूंगा। और देर से आऊंगा तो कौन पूछेगा। कि कैसी नौकरी करते हो। आधी रात तक कहां रहते हों। हमेशा उनसे सुबह कहता था। आज शाम को कह आया। बाबा राम राम।
क्यों रूलाते हो यार । आज वैसे भी मन सुबह से बहुत भारी है।
ReplyDeleteBahut Gehri baat kah di yaar....yehi satya hai aajkal ka ???
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