Wednesday, April 13, 2011

हम भी इस भीड़ में इसी तरह मरेंगे अकेले।

खबर आप सभी ने देखी और सुनी होगी। किस तरह से दो बहनें अकेलेपन का शिकार हुई। न पड़ोसी न मोहल्ला और समाज तो दूर की बात है। बात सिर्फ इतनी सी नहीं है कि एक ऐसे शहर में जहां हर जगह भीड़ है। रहने को जगह नहीं। चलने का इत्मीनान है। सडके जाम में खो गई है। लोग नहीं सिर्फ भीड़ दिखती है। उसी शहर में कोई इतना अकेला हो सकता है। लेकिन बात जब टेलिविजन से निकल कर अपने तक आती है। तो गौर से देखिए। अपने चारों तरफ। हम भी कितने अकेले है। पिछले दिनों सागर गया था। किसी ने पूछा तुम्हारे पड़ोस में कौन रहता है। में चुप रहा है। मैंने कहा पता नहीं। वह हैरत से देखता रहा। और मैं अपने पड़ोसी के बारे में सोचता रहा। हमारे सरोकार इतने अकेले है। सीमित है। कि उन्हें किसी की जरूरत नहीं। हमने अकेलेपन की एक संस्कृति पनपाई है। और अब उसीके नतीजे सामने आने लगे है। हम अपने बाजू वाले से पानी मांगना भी पसंद नहीं करते। हम बाजार से पानी खरीदकर लाना बेहतर समझते है। बात पानी की नहीं। बात रिश्तें की है। हमारे रिश्तें एक गिलास पानी के भी नहीं है। तो हम दुख दर्द बांटने की तो सोच ही नहीं सकते। हम अपने को समाजिक आदमी मानते है। लेकिन जब हमें ही नहीं पता हमारे पड़ोस में कौन रहता है तो आम लोगों की परेशानी हम समझ सकते है। हमारे फैस बुक पर और औरकुट पर हजारों दोस्त हो सकते हैं। लेकिन आसपास नहीं है।। हम भी इतने ही अकेले है। जैसी की वे दो बहनें थी। और आप अपनी बताईए ।

1 comment:

  1. Good observation.....
    But I have been enjoying my neighborhood relations ,,,wherever I may be...

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