पिछले करीब चार साल से इस प्लेटफार्म पर कुछ नहीं लिखा। ऐसा तारीख कह रही है। रात करीब एक बजे यह प्लेटफार्म अचानक से सामने आ गया। जैसे रेल्वे स्टेशन पर कोई दोस्त अचानक से मिल जाए। कहे पहचाने नहीं। पहले तो बहुत अपनापन दिखाते थे। पर शायद वक्त के साथ साथ हम बदलते रहते हैं। लेकिन कुछ चीजें ऐसी है जो लगता यहां कभी भी लौट आओ तो लोग पहचान लेगें। जैसे अपना शहर,अपना मोहल्ला,अपने पुराने दोस्त और अपना पुराना हुनर। लगता है कभी भी हर तरफ से हार गए तो भी शब्द धोखा नहीं देगें।इन्हें गढ़ ही लूगां। ये वो दोस्त है जो आोहदा और हैसियत पूछे वगैर भी गले लगा लेगें। इसलिए अपना पहला हुनर, और पुराने दोस्त, गांव का घर हमेशा संभाल के रखिएगा । काम आएंगे।
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