आप चाहे तो आशीष देवलिया को गालियां दे सकते हैं। उनका नंबर है ....९८७१०१७३७० । अगर आपको मेरा ब्लाग बुरा लगता है तो। अगर अच्छा लगता है। तो उन्हें बधाई दीजिए। अपन कंप्यूटर की तकनीक को लेकर पूरी तरह से अपढ़ है। अपना कंप्यूटर खराब हो गया। उसमें वाइरस आ गया। और मेरा हिंदी फोंट खराब हो गया। उसे वापस लाने की कोशिश की। लेकिन हुआ नहीं। अपन समझ गए। अपने कूबत में नहीं है। फिर आशीष से कहा और उन्होंने कोशिश करके। इसे चालू किया। और फिर से हम अब ब्लाग लिखना शुरू कर रहे हैं।
जो समय निकल जाता है। उसे याद करना। उसे लिखना कुछ अजीब सा मन में खिचाव पैदा करता है। लगता है। कि हमने अपने समय का इस्तेमाल ठीक तरीके से नहीं किया। वह यू हीं जाया हो गया। आप लोगों से महीनों बाद बातचीत हो रही है। कभी मैं बीमार रहा। तो कभी कंप्यूटर। कभी फोन गुम गया। तो कभी फोंट ही गुम हो गए। हां इन दिनों कुछ नई किताबें जरूर पढ़ी।
एक विचारक की बात मुझे बहुत अच्छी लगी। कि तुम ज्यादा देर तक पंजे के बल नहीं खड़े रह सकते। मैं यह बात पढ़ कर घंटों सोचता रहा। हम तो अपनी जिंदगी में पंजों के बल ही खड़े रहने की कोशिश करते रहते हैं। पूरा समय इसी में निकलता है। कि जो हम नहीं है। उसे हम बार बार जताना चाहते हैं। अपनी ऊंचाई से ज्यादा दिखना चाहते है। हम किसे धोखा दे रहे हैं। अपनी झूठी उंचाई से । अपने आप को । या फिर दूसरों को । लेकिन धोखे की उम्र इतनी छोटी होती है। कि हमें सिर्फ दुख ही मिलता है उससे।
आज अपने एक बहुत पुराने दोस्त नोएडा से आए थे। नवरात्री में उनकी बहिन को लोग देखने आने वाले है। वे मेरी पत्नी के कुछ जेवर उधार चाहते थे। मना करते या उन्हें फलसफा सुनाते तो वे शायद बुरा मान जाते। लगा कह दूं। कि जिंदगी का इतना बड़ा रिश्ता तुम तय करने जा रहे हो। वो भी झूठ की बुनियाद पर। यह कैसे और कितने दिन चल पाएगा। लेकिन हिम्मत नहीं हुई कहने की। हम क्यों बार बार पंजों पर खड़े होना चाहते हैं। पता नहीं। लेकिन में तो शायद अभी भी पंजे पर ही खड़ा हूं। आशीर्वाद दीजिए। कि वापस अपने पैरों पर आ सकूं।। हो सकता है कुछ बोना हो जाउं।लेकिन सच्चाई तो वही है। क्या कहते है।
दोस्त, जिनके पैरों में ताकत नहीं होती,वही पंजों पर चलते हैं क्योंकि जिस दिन वह पैरों के बल चलते हैं उस दिन फिसल कर मूंह के बल गिरते हैं, इसलिए बेचारे पंजो के बल चलकर खुद को ऊंचा दिखाने की कोशिश करते हैं
ReplyDeleteGood My Dear,
ReplyDeleteTruth is always painful so it is better to accept as early as possible....
But tell me ...Have you given the jewellery of BHABHI JI to that needy friend ????