Monday, October 18, 2010

मुफ्त के मजे के सहारे कटती जिंदगी।

अपन साउथ दिल्ली की सबसे खूबसूरत मॉल के सामने रहते है। सिलेक्ट सिटी वॉक। लेकिन महीनों में जा पाते हैं। कभी कभार। पिछले दिनों गए थे। मॉल में घुसते ही एक सुंदर स्मार्ट लड़की ने नमस्कार किया। और बताया कि उसके साथ हमें एक खेल खेलना है। खेल जीते तो कोल्ड ड्रिंक की दो बोतलें मिलेगीं। और हार भी गए तो भी एक बोतल तो साथ रहेगी ही। खेल सीधा साधा था। खेल का नाम था। ऊ....आ। वो ऊ कहेगी तो हाथ आगे ले जाना है। आ कहेगी। तो हाथ पीछे लाना है। और ऐसा करते रहना है। जो आखरी में बचा रहेगा। वो जीत जाएगा। बात खेल की नहीं थी। बात मुफ्त में कोल्ड ड्रिंक की बोतल की थी। मैं न बोलकर आगे चला गया। वो बोली आपका दिलचस्पी क्या खेल में नहीं है। मैंने कहा खेल में है। मुफ्तखोरी में नहीं है। यह खेल नहीं है। लालच का दाना है। मुझे नहीं खाना है।
आगे फिर एक नौजवान मिला। बोला सर इस फार्म को भर दीजिए। मैंने कहा कि मुझे यह सुविधा नहीं चाहिए। वह बोला फिल्म के दो टिकिट मुफ्त में मिलेगें। इसके कुछ कदम बाद फिर किसी ने रोका सर यह कार्ड बनवा लीजिए। आपको फ्री में कॉफी मिलेगी। मैं चुप रहा और सोचने लगा कि हमारी रोज मर्रा की जिंदगी में अब इतना समय और धन नहीं है। कि जिंदगी को घसीटते घसीटते उसमें मजा के लिए भी हासिया हो। लिहाजा इस बाजार ने मुफ्त में मजा का लालच देने का फार्मूला बना लिया है। वह जानता है कि नौकरी पेशा आदमी अगर फिल्म देखता है तो कई बार बजट लिखता और मिटाता है। लेकिन अगर उसे मुफ्त में फिल्म की टिकिट मिल जाए। तो उसे लाटरी लग जाती है। कौन और क्यों यू ही बैठकर कोल्ड ड्रिंक पिए। लेकिन अगर आ और ऊ करने से मुफ्त में मिलती है तो बुराई क्या है।
अब हमारी जिंदगी में मजा करना कठिन और मंहगा होता जा रहा है। लगता है आने वाले दिनों में बाजार यू हीं हमारे लिए कभी कभार कुछ अपनी जूठन के टुकड़े फेकेगा और हम उसे खाकर धन्य होगें। वही हमारे लिए मजा होगा।
अमिताभ बच्चन भले कहते हों। कि उनका खेल लोगों के सपने पूरे करता है। लेकिन शायद उन्हें नहीं पता कि किसी के सपने किसी एक खेल से पूरे नहीं होते। सपने तो मंजिल तय करने और एकाग्रता के साथ की गई मेहनत से पूरे होते है। जुआ जीतने से कोई रास्ता नहीं बनता। बल्कि ऐसी बैशाखी लोगों को आंखों में इस तरह चित्रित होती है। कि लोग अपनी कुदाल और छैनी हथोड़ा भूलकर जुआ के पांसों में उलझ जाते हैं। इस मुफ्त खोरी की प्रवृत्तियों से हम अपने आप को कैसे बचा पाएगें। पता नहीं। आप क्या सोचते हैं। हमें लिखिएगा जरूर।

2 comments:

  1. bahut khoob. sachmuch, ye aakhan dekhi hai.

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  2. muft main paida hone ke baad asli maze to tumhare hi hain bhai.kabhi nakad le-de ke paida hote to tumhen pata chalta ki gaadi kamai ki khushaboo kya hoti hai.

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