Monday, April 2, 2012

मेरी मां दादी बन गई और दादी परदादी।

एम्स के ऑपरेशन थिएटर के आखरी दरवाजे से पवन ने इशारा किया। जीत का चिन्ह बनाया। मुझे समझ में नहीं आया। फिर पास आकर उसने बताया कि बेटा हुआ है। पवन शिव भैया के साथी है। और अपना डिप्रैशन देखकर पवन को और विजय भैया को शिव भैया ने सुबह से ही तैनात कर दिया था। मामला थोड़ा तो गंभीर था भी बाकी अपना बुंदेलखंडी स्वभाव। सो अपन उसी दिन से परेशान थे जब से डाक्टर ने ऑपरेशन की बात कही थी। हालांकि डाक्टर ने खूब समझाया था। कि आजकल ऑपरेशन सामान्य बात है।कई पढ़े लिखे लोग तो खुद ही ऑपरेशन की पेशकश लेकर आते हैं। अपन तो कस्बाई मानसकिता के आदमी है। सो ऑपरेशन के नाम से ही डर लगता है। अनिता पूरे समय हिम्मत बांधे रही। पर जब आखरी दरवाजे पर हमें रोक दिया गया। और उसकी व्हील
चैयर अँदर चली गई। तब दोनों की आँखें मिली और अपना सब्र तोड़ ही गई।
हमनें सुना तो कई बार था कि इंतजार में दिल सीने में नहीं आँखों में धड़कता है। पहली बार कई अनुभव हुए। एम्स की तीसरी मंजिल पर इंतजार करना मुश्किल था। हम हर बार शिव भैया से सवाल पर सवाल पूछते रहे। और पवन को बार बार अंदर चलने के लिए कहते रहे। अपने साथ में महेंद्र भी थे। वे एम्स के ही कर्मचारी हैं। सो उन्हें भी खबरें पता करने के लिए खूब परेशान किया। रवि और आशीष देवलिया भी अपना काम धाम सब छोड़कर अपने साथ खड़े रहे। अनिल हमारे भांजे है। और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अफसर है। वे पूरे समय रहे। और जाते हुए कहने लगे हमें पता था कि सब ठीक होगा। हम मामी के लिए नहीं । आपके लिए आए थे। क्यों कि सागर के लोग हमेशा तनाव में दिमाग से काम लेना बंद कर देते है। बात अपने बारे में तो बिलकुल ठीक थी।
बात सिर्फ रिश्तों की नहीं होती। और भी बहुत कुछ बदलता है। हमारे सबसे छोटे भाई जीबू लाल ने फोन करके अलग तरह की बात कही। कह रहा था कि अब समझदारी से काम करना तुम पिता बन गए हो। बात मेरे पिता बनने की नहीं है। लेकिन लगा कि एक बच्चें के आने से सबका प्रमोशन हो गया। और एक पीड़ी आगे बड़ गई। हमने देखा कि इस दौरान अनिता के ना जाने कितने टेस्ट हुए। कई बार तो एक दिन में छह छह बार तक ब्लड लिया गया।लेकिन उसे हमनें परेशान नहीं देखा। लेकिन जब बेटे का खून पीलिया टेस्ट करने के लिए लिया गया तो वह खूब रोई। उसे बच्चे के दर्द का अहसास था। मुझे लगता है कि मां या पिता होना प्रभु की तरफ से एक नए तरह की अनुभूति का रास्ता खुलना है। दूसरे के दर्द का अहसास करना शायद मां या पिता होकर ही जाना जा सकता है। सिर्फ मुझे पिता होने की खुशी नहीं है। हम इस बात को लेकर भी खुश है। कि आप सब लोगों का भी संबंधों की दुनिया में प्रमोशन हो गया। बधाई हो।

2 comments:

  1. Alokji,
    badhai!
    lekin kya ye khabar mujhe aap ke blog ls milni thi.
    v s dahiya

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  2. Alok Bhai, badhai,
    Bachche ke janm ki khabar blog ke madhyam se padkar anand aaya. aur sambandhaon ke ayakha, adbhudh (marvelous)....

    patrakaar hone ka saboot......

    punah badhai.

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