Thursday, April 19, 2012

क्या अनुभूतियों का भी अभ्यास होता है।

बहुत दिनों बाद ब्लाग लिख रहा हूं। कभी समय नहीं मिला। तो कभी मन नहीं हुआ। कभी विषय में रस नहीं आया। और सिर्फ लिखने के लिए अपन से लिखा नहीं जाता। हालांकि इन दिनों कई घटनाएं घटी। जो लिखी जा सकती थी। पर वे घटनाएँ कागज पर उतरी ही नहीं। सही या गलत नहीं जानता पर मुझे ऐसा लगा कि अनुभूतियों का भी अभ्यास होता है। जब हम लिखते रहते हैं। तो विषय भी सामने आकर अक्सर खड़े होजाते थे। और मैं उन्हें ब्लाग में छाप देता था। लेकिन क्या प्रेम करने का। अच्छे मनुष्य होने का। मददगार व्यक्ति होने का। भावनात्मक होने का। या फिर एक बेहतर व्यक्ति की तरह काम करने का भी अभ्यास होता है। क्या हमें इसकी भी प्रैक्टिस करनी पड़ती है।
मुझे समझ में नहीं आता कि क्या अभ्यास से चरित्र बन सकता है। क्या किसी चीज को बार बार करके आप बेहतर आदमी बन सकते है। क्या हम सच बोलने का अभ्सास कर सकते है। या फिर हमारे अंदर का दर्शन। हमारे संस्कार हमारे अंदर सत्य पैदा करते है। और फिर हम जो भी बोलते है वह सच होता है। बात शायद बोझिल हो रही है। लेकिन मैं यह बात समझना चाहता हूं। कि हम अभ्यास से हुनर तो विकसित कर सकते है। लेकिन क्या हम अपना चरित्र भी बना सकते है। क्या अच्छे होने की हमें कोशिश करनी चाहिए। या हमारे अंदर की प्रकृति ही ऐसी हो कि हम सिर्फ अच्छा ही कर सकें। बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं। सो लिखने का अभ्यास खत्म हो गया है। आज छोटा ही लिख रहा हूं। लेकिन आप बताना जरूर क्या हमें अच्छे बने रहने की प्रैक्टिस करते रहना चाहिए। नहीं तो हमारी अनुभूतियां मरने लगती है। शायद इनके भी कोई सैल होते हों। जो इस्तेमाल न होने पर डैड हो जाते हों। जैसे डाक्टर कहते हैं। मेरे सिर पर बालों के सैल डेड हो गए हैं। और मैं गंजा हो गया हूं।

2 comments:

  1. Agar abhyas kiya ja raha hai to kuch kami to jaroor hai... sawal sach me jatil hai kiya buddh or mahaveer na bhi abhyas kiya hoga ???

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  2. Karat-karat abhyas ke jad-mati hot sujan....
    If start at early age only,its my opinion.

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