Sunday, October 17, 2010

अंदर का रावण मरे। तो अपन भी राम बनें।

विजया दशमीं को अपन दिल्ली में ही थे। घर नहीं गए। हालांकि घर से कई फोन आए। हमारे बुंदेलखंड में दुर्गा अष्टमी को कुल देवी की पूजा होती है। उसका महत्व दीपावली और होली से भी ज्यादा होता है। फिर भी अपन नहीं जा पाए। दादी को समझा दिया। हालांकि मध्यप्रदेश और दिल्ली की विजया दशमीं में काफी अंतर हैं। अपने घर पर परमा को देवी रखी जाती हैं। और फिर दसवें दिन उनका विसर्जन होता है। वैसा ही जैसे महाराष्ट्र में गणपति का होता है। सो दशहरे के दिन पूरी रात काली विसर्जन होता है। अखाड़े ढोल ढमाके और आतिशबाजी खूब होती है। दिल्ली में यह चलन नहीं है। यहां रावण को जलाना ज्यादा बड़ा त्योहार होता है।
बचपन में दादी से रामायण और महाभारत की कथाएं खूब सुनी है। जो कहानियां दादी रामायण और महाभारत की सुनाती है। उनमें से कई बातें पढ़ने पर नहीं मिलती है। वे बाते उन तक कैसे पहुंची। पता नहीं। लेकिन जो छोटी छोटी बातें बे अक्सर समझाती थी। उनमें खूब मजा आता था। दादी कहती है। कि रावण का अंहकार, कुंभकरण की नींद, और दूसरी तामसी प्रवृत्तियां जब तक हमारे अंदर है। तब तक हम भी रावण ही है। रावण और राम में विचार का अँतर है। अगर हमारे अंदर राम की मर्यादा है तो हम राम हैं। और अगर रावण का अंहकार है तो हम रावण है। लिहाजा यह हमारे ऊपर है। कि हमें क्या बनना है। राम और रावण दो अलग अलग नहीं है। हमारे भीतर एक साथ है।
इस बात को मैं जितना समझता जाता हूं। उतना अपने आप से डरने लगता हूं। अब हमें ऐसा लगता है। कि हमारी सोच और प्रवृत्तियों में राम कम और रावण ज्यादा हावी रहता है। हम ज्ञान में भले रावण से कम हों। लेकिन अंहकार को अगर किसी मशीन से नापा जाए। तो शायद हम आज रावण से ज्यादा अंहकारी है। कुंभकरण से ज्यादा तामसी और मेघनाथ से ज्यादा राक्षस।
मोहल्ले के बच्चे सुबह सुबह ही चंदा कर रहे थे। कहने लगे भाई साहब कुछ पैसे दीजिए। मैंने पूछा। तो उन्होंने बताया कि रावण जलाना है। मैंने पूछा क्यों। किसी ने सिखा दिया था। या वे ही मौलिक थे। पता नहीं। बोले रावण बुराई का प्रतीक है। उसे जलाना है। मैंने कहा रावण की बुराई तो जला दोगे। और अपनी का क्या करोगे। वे चुप हो गए। मुझे अपनी गलती समझ में आई। मेरा यह प्रश्न उन बच्चों से नहीं अपने आप से था। मैं चुपचाप एक नोट देकर घर आ गया। और मैं सोचता रहा। कि रावण को हम हर साल जलाते है। लेकिन जो अपने अंदर रावण पनप रहा है। फल फूल रहा है। उसका का क्या करें। और अंदर का राम तो दुबला और कमजोर होता जा रहा है। मुझे पता नहीं मेरे अंदर का रावण कैसे और कब मरेगा। यह मरे तो हम भी राम बने। आपको कोई उपाए पता हो तो बताइगा जरूर।

5 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति .
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  2. Hey Alok as always dada and dadi makes the essence for all your writing...great, emotional and thoughtful...thanks..

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  3. पहली बधाई तो विजयादशमी की और दूसरी लंबे अंतराल के बाद ब्‍लॉग दुबारा लिखने की। सुंदर प्रस्‍तुति।

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  4. ander ka ravan kahan marta hai.ise marne ke chakkar main logon ki saari zindagi beet jaati hai lekin ravan hai ki marta hi nahin.lihaja kosish bekar hai.achha yahi hai ki ram banane ki jagah aap ek achhe insaan bane rahan yahi bahut hai.

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  5. Vijay Dashmi Ke awsar par aapko badahai.
    bohat sunder likha hai

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