Thursday, July 29, 2010

क्या आपके घर भी आते हैं चिपकू भाईसाहब। चाटू अंकल

पिछले दिनों मैं अपने एक दोस्त के घर बैठा था। प्रोग्राम था। बाहर जाकर खाना खाने का। दोस्त की पत्नी और बच्चे तैयार हो रहे थे। मैं भी अपने मित्र का उसके घर पर ही इंतजार कर रहा था। अचानक घंटी बजी। और हम सब खुश हो गए। कि वह दफ्तर से आ गया होगा। और हम अपने तय कार्यक्रम पर निकल पड़ेगें। लेकिन दरवाजा खोलने गया बंटी कुछ परेशान सा लौटा। मैंने पूछा। क्या हुआ। उसकी शक्ल देखकर मैं कुछ डर सा गया था। वह बोला अरे यार। चाटू अँकल आए हैं। मैंने सोचा। जैसा अपना घर का नाम चूंचूं है। वैसे ही किसी अंकल का नाम चाटू होगा। सो मैंने कहा कि इसमें परेशान होने की क्या बात है। अंकल आए है। तो उन्हें बैठने दो। चाय पानी दो। जब तक तुम्हारे पापा आजएंगे। वह मुझ पर ही गुस्सा हो गया। बोला। अब सब प्रोग्राम खराब हो गया। इतना कहकर उसने गुस्से में चप्पल उतारी और भीतर चला गया।
मुझे पूरा माजरा समझ में ही नहीं आया। कुछ देऱ बाद उनकी आवाज आई। बेटा पानी तो पिला। पता नहीं ....कौन ...पर कोई पानी दे आया। फिर उन्होंने पूछा भाभीजी घर पर है। कब तक आएंगे। साहब। शायद भाभी ने उनको टालने के लिए कहा। एक घंटा लग सकता है। उन्होंने कहा चलो कोई बात नहीं। हम उनका इंतजार कर लेगें। भाभी जी हम चाय पीएगें। फिलहाल। बाकी भाईसाहब को आने दो फिर देखते हैं। आवाज फिर आई। भाभीजी टीवी का रिमोट कहां है। पेपर कहां है। अरे रजनीश की सीडी कहां है। ये सारे प्रश्न उन्होंने एक ही सांस में किए थे। अब बात मुझे कुछ समझ में आने लगी थी। मैंने अपनी भाभी से पूछा। माजरा क्या हैं। उन्होंने बताया कि ये उनके दोस्त है। हर शनिवार को आते हैं। कभी कभी तो रविवार को भी आते है। इनका परिवार यहां नहीं रहता। खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है। चाय के समय आते हैं। तो चाय तो पीते ही है। फिर घंटो बोलते रहते हैं। और खाना खाकर जाते हैं। क्या बताए। बहुत चांटते हैं। कई बार तो आपके दोस्त सो भी जाते हैं। लेकिन जब वे उठते हैं। तो ये बैठे ही मिलते हैं।
चाटू अँकल की सुनकर मुझे अपने एक चिपकू भाई साहब याद आगए। सागर में उन दिनों हम युनिवर्सिटी में पढ़ते थे। चिपकू भाई साहब हमसें दो तीन साल बढ़े थे। लेकिन वे हमारी ही क्लास में आ गए थे। उन्हें चिपकने की इतनी गजब बीमारी थी। कि उन्हें देख कई लोगों को मैंने दौड़ते देखा है। और शायद कई बार मैंने भी रास्ते बदले हैं। उनके साथ कई परेशानियां थी। वह बिना रुके। घंटों बोल सकते थे। अगर वो साथ में हैं। तो आप किसी से भी कोई भी बात नहीं कर सकते। बोलने का अधिकार सिर्फ वे अपने पास ही रखते थे। वे सलाह देने से लेकर शेऱ शायरी तक करते थे। वे ऐसे आदमी थे कि वे फुर्सत में भी अच्छे नहीं लगते थे। और एक बार वे मिल जाए। तो फिर घंटो आपसे चिपके रहते थे। आप दुनिया में कोई भी काम बताईए। वे उससे जुड़ा हुआ काम बताकर आपके साथ हो लेते थे। लेकिन इस दिल्ली में जहां हर कोई व्यस्त है। यहां घर पर न कोई चाटूं अंकल आते है। न रास्ते में कोई चिपकू भाई साहब मिलते हैं। क्या आपके घर भी कभी कोई चाटू अँकल या चिपकू भाई साहब आते थे। अगर आते थे हमें बताईएगा जरूर।

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