Sunday, October 5, 2025

 पिछले करीब चार साल से इस प्लेटफार्म पर कुछ नहीं लिखा। ऐसा तारीख कह रही है। रात करीब एक बजे यह प्लेटफार्म अचानक से सामने आ गया। जैसे रेल्वे स्टेशन पर कोई दोस्त अचानक से मिल जाए। कहे पहचाने नहीं। पहले तो बहुत अपनापन दिखाते थे। पर शायद वक्त के साथ साथ हम बदलते रहते हैं। लेकिन कुछ चीजें ऐसी है जो लगता यहां कभी भी लौट आओ तो लोग पहचान लेगें। जैसे अपना शहर,अपना मोहल्ला,अपने पुराने दोस्त और अपना पुराना हुनर। लगता है कभी भी हर तरफ से हार गए तो भी शब्द धोखा नहीं देगें।इन्हें गढ़ ही लूगां। ये वो दोस्त है जो आोहदा और हैसियत पूछे वगैर भी गले लगा लेगें। इसलिए अपना पहला हुनर, और पुराने दोस्त, गांव का घर हमेशा संभाल के रखिएगा । काम आएंगे। 


शादी की सालगिरह पर कबीर और ठाकुर साहब एक साथ याद आए।

कहीं इसका जिक्र नहीं था। लिहाजा आपको पता नहीं चला। आठ जुलाई को अपनी शादी के सात साल हो गए। व्यापम से संबंधित खबरों को करने के चक्कर में पूरा दिन गुजर गया। बारह बजे के बाद ही रात में घर पहुंचे। सो अपन को भी पता नहीं चला। लेकिन सात साल खूब पता चले। टीवी में काम करने वाले पत्रकारों का वास्ता लड़कियों से पड़ता रहता है। खासकर साथ में काम करने वाली स्मार्ट रिपोटर्स और सुंदर एंकर्स के साथ। कई बार किन्हीं लोगों पर दिल भी आ जाता है। अपन वैसे भी कमजोर दिल के आदमी है। उन दिनों दादी से एक आध बार जिक्र भी किया। लेकिन वे कहने लगी कि भैया नाप की चप्पल पहन लो। तो ठीक से और तेज चल पाओगें। नहीं तो पूरी जिंदगी संभलके चलने में ही कट जाएगी। सो अपन ने एक नाप की लड़की से। देहाती कहूंगा तो वह कम और उसके घर के लोग ज्यादा बुरा मान जाएगें। शादी कर ली।

शादी की सालगिरह पर कबीर याद आए। मैंने सुना है कि एक व्यक्ति कबीर के पास पहुंचा जेठ दोपहरी में। सलाह लेने। पूछा। परिवार के लोग विवाह के लिए पीछे लगे हैं। क्या करूं समझ में नहीं  आता। कबीर कुछ देर शांत रहे। फिर झोपड़ी में चिल्ला कर बोले। शाम ढल गई। रात होने को हैं। दीया नहीं जलाओगी क्या। अंदर से आवाज आई। माफ करना भूल गई। अभी जलाती हूं। कबीर की पत्नि उस दोपहरी में दिया जला कर बाहर रख गई। कबीर ने कहा कि अगर इतना भरोसा एक दूसरे में हो तो विवाह करना चाहिए।

हमारे बुंदेलखंड में ठाकुर साहब का किस्सा बहुत सुनाया जाता है। वे शादी करके लौट रहे थे कि उनकी घोड़ी उछल गई। गुस्से में उन्होंने कहा कि एक। वह कुछ देर बाद फिर उछली। उन्होंने  कहा दो। थोड़ा रास्ता तय करने के बाद वह फिर उछली। उन्होंने कहा तीन और उसे गोली मार दी। उनकी नवेली दुल्हन गुस्से में आ गई।  जोर जोर से चिल्लाने लगी। कोई शादी के दिन क्या हत्या करता है। आपका दिल पत्थर का है क्या। आपको दया नहीं आती क्या। थोड़ा दिमाग का इस्तेमाल तो करना था। ठाकुर साहब उनकी तरफ देखे और कहा एक। लोग कहते हैं। पूरी जिंदगी ठाकुर साहब की मजे से निकल गई। उन्हें दो नहीं  कहना  पड़ा.
मुझे लगा कि किसी संबंध को निभाने के लिए भरोसा बहुत जरूरी है। जितना ज्यादा भरोसा होगा। मजा उतना ज्यादा आएगा। मेंने पती-पत्नियों को मिस  काल पर लड़ते झगड़ते देखा है। उनको फोन की कॉल डिटेल्स का हिसाब मांगते देखा है। डिलीट की हुई मेल पड़ते देखा है। चलते तो ये संबंध भी है। लेकिन इनका ईधन प्रेम न होकर समझौता होता है। और संबंध तो चल भी जाए। लेकिन शादी प्रेम से ही चलती है। भरोसे से ही चलती हैं। चाहे वह भरोसा कबीर की पत्नी का हो या फिर ठाकुर  साहब की पत्नी का

Thursday, September 10, 2020

माफी का अंहकार

मेरे एक दोस्त का फोन आया। बोले जो भी गलती आज तक की हो। उसे माफ कर दो। मैंने पूछा कौन सी गलती। बोले कोई भी। हमने फिर पूछा। कौन सी माफी। कौन सी गलती। बोले माफी मांगने का दस्तूर है। सो मांग रहा हूं। मैंने कहा दिल से मांग रहे हो माफी। ये सुनते ही उनका मिजाज और स्वर दोनों बदल गए।  उनके स्वर में नाराजगी और तीखापन साफ सुनाई दिया।  अगली आवाज उनकी नहीं। गुस्से से काटे गए फोन की आई। फोन कटने से पैदा हुए सन्नाटे में मन कुछ सोचने लगा। यह पूरा वाक्या क्या था । मांग माफी रहे थे। लेकिन स्वर में इतना अंहकार था कि माफी के शब्द उसे उठा पाने में समर्थ ही नहीं थे। वे क्या माफी मांगकरअपने अंहकार को ही बल दे रहे थे। हमारे संस्कारों में माफी मांगना और माफ करना दोनों ही बड़े लोगों के काम बताए गए है। अगर कोई दिल से माफी मांगता है, तो उसे भगवान भी माफ कर देता है। पछतावा होना एक तरह की साधना करने जैसा है। और हर कोई आसानी से माफ नहीं कर पाता। इसे करने के लिए एक सामार्थ्य चाहिए। अंहकार नहीं। लेकिन अजीब बात है। लोग माफी मांगकर अपने अंहकार को सतुष्ट करते है। कुछ लोग माफ कर के अपने अँहकार को सतुष्ट करते हैं। 

Monday, April 27, 2020

बहुत जरूरी है फुर्सत के दिन -रात

एक अर्से के बाद याद आया कि हम ब्लाग भी लिखते थे। आप जैसे लोग इन्हें पढ़ा भी करते थे। आपाधापी में बहुत कुछ छुट गया। ब्लाग लिखना भी। लिखने के हजारों फायदे होगें। लेकिन एक फायदा यह भी है कि यह ऐसा आईना है जहां पर उसी रूप में दिखते जैसे थे। लोग जैसे फोटो खिंचाकर रख लेते है। वैसे ही शब्द भी आपकी तस्वीर बनाकर सहेज लेते है। आइने से ज्यादा गंभीर होती है शब्दों की तस्वीर। क्योंकि आइना सिर्फ वही नैन नक्श बताता है। जो आपने उस समय खीचें थे। लेकिन जो तस्वीर शब्द बनाता वह पूरा व्यक्तित्व ही खींच देता है। आइऩे की तस्वीर से रास्ते नहीं मिलते। लेकिन शब्दों की तस्वीर से रास्तें मिलते है। फिर उसी चौराहे पर वापस जा सकते हो। एके बार उन्हीं रास्तों को तक सकते हो। इसलिए आइने की तस्वीर तो ठीक है। लेकिन शब्दों  से अपना फोटो खींचते रहिए। काम आएगा। अपने को जानने के लिए यह जरूरी भी है। 

Sunday, July 10, 2016

नेताओं ने हमारी इंसानी पहचान मिटा दी। हमें सिर्फ जातियाों में बांट दिया।

सुबह खबर पढ़ी। मायावती ने कहा है कि वे उत्तर प्रदेश में सौ मुसलमानों को टिकिट देगीं। इसके पहले मोदी मंत्रीमंडल में जातिगत समीकरण देख चुका हूं।  एक जगह पड़ा था। इतने दलित। इतने पिछड़े। इतने ब्राह्मण मंत्री बनाए गए। इन तमाम गणितों को देखकर दुख होता है। मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान कहते है कि किसी माई के लाल में दम नहीं है। जो आरक्षण खत्म करा दे। लगता है कि हम सिर्फ जातियों में बंट कर रह गए हैं। हमारी  इंसानी पहचान खत्म हो गई है। अलग अलग राजनैतिक दलों के अलग अलग समीकरण है। किसी पार्टी ने हिंदू और मुसलमान एकता की  बात की और एक पार्टी बना ली। किसी ने सिर्फ हिंदुओं की बात की। पार्टी बना ली। यादव और मुसलमान पार्टी बना ली। दलित और मुसलमान पार्टी बना ली। क्या ये समीकरण सिर्फ चुनाव के जीतने के लिए खड़े किए जाते  है। शायद नहीं। इन समीकरणों पर मेहनत करके समाज को बांटने की साजिश हो रही है। और हम पूरी मासूमियत के साथ  बंटते चले जा रहे है। जरा गौर कीजिए कहीं हमारी पहचान सिर्फ जातियों की ही न बचे। और हम अपनी इंसानी पहचान खो दे। 

Wednesday, June 8, 2016

संयुक्त परिवार में व्यक्ति जल्दी बड़ा हो जाता है। एकल परिवार में लंबे समय तक वह छोटा ही बना रहता है।

कान्हा तीन साल के हो गए है। इसी साल नर्सरी में जाने लगे है। पिछले दिनों छोटी बहिन पोचम्मा के यहां बेटा हुआ। कान्हा को बताया कि तुम अब बड़े भैया बन गए हो। इसके पहले पोपी और गोगी हमारी दो और छोटी बहिनों के यहां बेटा हुए हैं। सो कान्हा को अब गिनती आने लगी है। तीन छोटे भाइयों के वे दादा बन गए है। हमसे पूछा पापा हम क्या राम बन गए है। हमने कहा बनना मुश्किल नहीं है। राम होना मुश्किल है। पापा क्या कहा आपने। कान्हा ने पूछा। मैंने सोचा पहले खुद तो समझ लू। फिर इसे बताउं। सयुक्त परिवार में तीन साल का कान्हा भी बड़ा हो गया है। उसे बात बात में बताया जाता है कि वो बडा भाई है। ये लोग छोटे है। बात खिलोना देने की हो। या फिर कोई और बात। लेकिन एकल परिवार में कान्हा अभी छोटा ही है।उसकी हर जिद पूरी होती है। समाज को उदार बनाने के लिए और सहनशील होने के लिए संयुक्त परिवार शायद इसीलिए जरूरी है।जहां तीन साल का लड़का भी राम बनकर अपनी चीजें बांटने को तैयार हो जाता है।

Monday, June 6, 2016

नहीं। कुछ पानी तो आदमी का अपना भी होता हैं।

हम लोग बैठकर गप कर रहे थे। तभी किसी ने कहा इस जगह का तो पानी ही खराब है। यहां का पानी पीकर हर कोई ऐसा ही हो जाता है। राज पाठक ने तपाक से कहा कि सारा दोष जगह के पानी का नहीं होता। कुछ पानी तो आदमी का अपना भी होता है। बेबाक और हाजिर जबाबी पर लोग हंसने लगे। लेकिन मैं वही अटक गया। राज पाठक हमारे पुराने साथी है। और करीब मैं उन्हें 15 साल से जानता हूं। वे प्रगतिशील भी हैं। और लिखते भी रहते है। अच्छी बातें लिखने और करने का उन्हें अभ्यास है। लेकिन यह बात सो टंच की थी। बात संस्कार की थी। हालात कैसे भी हो। लेकिन जो संस्कार तुम्हें मिले हैं। तुम उन्हें नजर अंदाज नहीं कर सकते.।तुम्हारे अपने संस्कार बोलते भी हैं। और दिखते भी हैं।