Thursday, June 2, 2016

हम मामा बन गए। आठ सौ ग्राम की पोचम्मा के यहां हुआ है। दो किलो का बेटा। घर में कृष्णा आया

मुझे एक घड़ी बहुत पसंद है। लेकिन उसे देखकर डर भी लगता है सो निकाल के रख दी। उसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वक्त का कांटा रुकता ही नहीं है। सेकेंड वाली सुई लगातार चलती रहती है। उसे देखकर अपन को डिप्रेशन होता है कि वक्त बढ़ता जा रहा है। और अपनी जिंदगी रुकी हुई है। वक्त की रफ्तार ने एक बार आकर कांन में जोर से चिल्लाया। अपन पहले डर गए। फिर उस रफ्तार को पहचाना भी। एचआरडी मंत्री के इंटरव्यू का इंतजार कर रहा था। शास्त्री भवन में। यहां पर फोन के सिग्न कुछ कम थे। सो कुलू की आवाज टूट कर आ रही थी। पहले बीना बुआ ने बताया था कि पोच्चमा को एडमिट किया है। अस्पताल में। फिर कुछ देर बार कूलू का फोन आ गया कि पौचम्मा के यहां बेटा हुआ है। अपन मामा बन गए।
पोचम्मा हमारी छोटी बहन है। वह जब पैदा हुई थी। तो आठ सौ ग्राम की थी। उसका बचना उसका स्वस्थ्य रहना भगवान का प्रसाद है। हम लोगों के लिए। वह घर में छोटी थी। सो अभी तक छोटी ही है। उसका मांं बनना हमारे लिए वक्त की रफ्तार का अंदाजा है। मीटर है। हमारी छोटी सी पोच्चमा मां बन गई। भगवान उसे इस जिम्मेदारी के लिए तैयार करे।और उस पर अपना आशीर्वदा बनाए रखे। अपने छुटके लाल को देखने की खूब इच्छा है। काम से फुर्सत मिले। तो फौरन भाग कर सागर जाउँगा।
हमारी छोटी बुआ की एक सहेली आती थी। वे साउथ इंडियन थी। उन्हीं दिनों पौचम्मा की जन्म हुआ। और उसका नाम पौचम्मा हो गया। बाद में पता चला कि साउथ में एक बहुत दयालू देवी है। उनका नाम है। पौचम्मा। उनका मंदिर भी है। लेकिन पौचम्मा ने अपना नाम सार्थक किया है। हालांकि मैं सोच रहा था कि यह काम सिर्फ कोई मां ही कर सकती है। जो खुद आठ सौ ग्राम की होकर जन्म लेती है। लेकिन अपने बच्चें को उसी शरीर में से दो किलों का बनाकर निकालती है।

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